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छठ महापर्व: आस्था, अनुशासन और सामाजिक समरसता का अद्भुत उत्सव

भारत की सनातन संस्कृति में अनेक पर्व-त्योहार हैं, परंतु छठ वह एकमात्र ऐसा पर्व है जो न केवल आस्था का प्रतीक है, बल्कि सादगी, समानता, और स्वच्छता का जीता-जागता उदाहरण भी है।
यह चार दिवसीय महापर्व किसी रीति-रिवाज या दिखावे का प्रदर्शन नहीं, बल्कि प्रकृति, सूर्य और मानव के अद्भुत समन्वय का पर्व है जहां भक्ति में शुद्धता है, आस्था में अनुशासन है और भावनाओं में पर्यावरण संरक्षण की गूंज।

छठ का आध्यात्मिक अर्थ:–
छठ पर्व सूर्य उपासना का पर्व है। सूर्य को जीवन का आधार माना गया है वह जो बिना किसी भेदभाव के सबको प्रकाश और ऊर्जा देता है।
इसलिए इस दिन उगते और डूबते दोनों सूर्य की पूजा की जाती है।
यह सिखाता है कि जीवन के हर चरण उत्थान और पतन दोनों में समान श्रद्धा रखनी चाहिए।
छठी मईया (ऊषा देवी) को मातृत्व, संयम और शक्ति की देवी माना जाता है।
उनकी आराधना से परिवार का कल्याण, संतान की दीर्घायु और समृद्धि की कामना की जाती है।

चार दिवसीय आस्था यात्रा:–
नहाय-खाय :– व्रती शुद्ध आचरण के साथ स्नान कर सादगीपूर्ण भोजन करते हैं। यह शरीर और मन की शुद्धि का प्रतीक है।

खरना: – दूसरे दिन व्रती पूरे दिन निर्जला उपवास रखते हैं और संध्या को गुड़-चावल की खीर का नैवेद्य बना कर आरती करते हैं। यह आत्मसंयम और विनम्रता का प्रतिक है।

संध्या अर्घ्य ;– तीसरे दिन संध्या को डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। यह सूर्य के प्रति आभार का भाव है कि उन्होंने दिन भर जीवन दिया।

प्रातः अर्घ्य:–चौथे दिन सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है, जो नए सवेरा, नई ऊर्जा और नई शुरुआत का प्रतीक है।

छठ: समाज का आदर्श स्वरूप:–
छठ वह पर्व है जहां
कोई दंगा नहीं होता,
इंटरनेट काटने की जरूरत नहीं पड़ती,

शांति समितियाँ नहीं बैठतीं,
चंदे की गुंडागर्दी नहीं होती,
कोई भेदभाव नहीं होता।
राजा और रंक एक ही पंक्ति में खड़े होते हैं,
पुजारी नहीं, व्रती स्वयं अपनी पूजा करते हैं,
कोई मूर्ति नहीं, देवता स्वयं सूर्य हैं,
कोई अनुदान नहीं, केवल आस्था है।

छठ पर्व यह सिखाता है कि भक्ति का अर्थ बाह्य प्रदर्शन नहीं, बल्कि भीतरी अनुशासन है।
यह पर्व न तो पाखंड है, न व्यापार यह तो आत्मा की पवित्रता का उत्सव है।

पर्यावरण और लोक संस्कृति की मिसाल:–
छठ का हर कार्य चाहे घाट की सफाई हो या प्रसाद की तैयारी — पर्यावरण संरक्षण का आदर्श उदाहरण है।
सभी प्रसाद ठेकुआ, केला, नारियल, गुड़, चावल प्राकृतिक हैं, किसी भी कृत्रिम वस्तु का उपयोग नहीं।
यह पर्व ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी संजीवनी देता है , क्योंकि सारी सामग्री स्थानीय कारीगरों और किसानों से ली जाती है।
लोकगीतों की मधुर ध्वनि, सजे घाटों का सौंदर्य, और सामूहिक भक्ति की लहर यह सब मिलकर छठ को सांस्कृतिक एकता का प्रतीक बनाते हैं।

छठ पर्व: एक संदेश:–
छठ हमें यह संदेश देता है कि
जब समाज के प्रत्येक व्यक्ति में समानता, सादगी और समर्पण का भाव होगा, तब किसी कानून या शासन की जरूरत नहीं पड़ेगी।
जहां श्रद्धा हो, वहां अनुशासन स्वतः आता है;
जहां भक्ति हो, वहां विवाद मिट जाते हैं;
और जहां छठ की तरह आस्था और सादगी हो, वहां समाज में सद्भाव और शांति स्वतः पनपती है।

प्रार्थना:–
हम सबकी यही प्रार्थना है ,
कि मां छठी मईया सबके जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लाएं,
हर घर में प्रेम, हर मन में विश्वास और हर जीवन में प्रकाश का संचार हो।

“जय छठी मईया!”
आप सभी को छठ पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं
आस्था, सद्भाव और सामाजिक समरसता के इस महान पर्व पर आप सबके जीवन में मंगलमयता का उदय हो।

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